ऑपरेशन सिन्दूर को भारत का ‘फौलादी संकल्प’ बताया
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ‘स्वदेशी’ का आह्वान किया
नयी दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गुुरुवार को देशवासियों को स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने और भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने का संकल्प लेने के आह्वान किया और कहा कि देश के हर नागरिक को स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा समान रूप से मिलनी चाहिए। 79वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम अपने परंपरागत संबोधन में राष्ट्रपति ने आर्थिक वृद्धि को सामाजिक विकास एवं गरीबी दूर करने जैसे लक्ष्यों की दृष्टि से महत्वूपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि भारत ने आजादी के बाद आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की दिशा में काफी प्रगति की है और देश इस समय मजबूत घरेलू मांग के साथ विश्व की सबसे तेजी से वृद्धि कर रही एक मजबूत अर्थव्यवस्था है और महंगाई दर नीचे बनी हुई है। श्रीमती मुर्मु ने अपने संबोधन में ऑपरेशन सिन्दूर को भारत के ‘फौलादी संकल्प’ का परिचय बताते हुए कहा कि इसे आतंकवाद के विरुद्ध मानवता के संघर्ष की एक मिसाल के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिन्दूर दुनिया को संदेश है कि “हम आक्रमणकारी तो नहीं बनेंगे लेकिन अपने नागरिकों की रक्षा के लिए जवाबी कार्रवाई करने में तनिक भी संकोच नहीं करेंगे। ”
उन्होंने इस अवसर पर नागरियों से पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जीव-जंतुओं की रक्षा तथा देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प में हर संभव योगदान करने का आह्वान किया। राष्ट्रपति ने स्वाधीनता-संग्राम सेनानियों के बलिदान और भारत विभाजन की विभीषिका झेलने वाले हमारे पूर्वजों की याद करते हुए कहा, “न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता। ये हमारी सभ्यता के ऐसे सिद्धांत हैं जिन्हें हमने स्वाधीनता संग्राम के दौरान पुनः जीवंत बनाया।”
उन्होंने इस अवसर पर अंतरिक्ष और खेल की दुनिया में देश की प्रतिभाओं की उपलब्धियों का भी उल्लेख किया।
राष्ट्रपति ने स्वदेशी की भावना को जाग्रत करने पर बल देते हुए कहा, “स्वदेशी का विचार ‘मेक-इन-इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ जैसे राष्ट्रीय प्रयासों को प्रेरित करता रहा है। हम सबको यह संकल्प लेना है कि हम अपने देश में बने उत्पादों को खरीदेंगे और उनका उपयोग करेंगे।”
उन्होंने कहा कि स्वाधीनता संग्राम के दौरान, 1905 में शुरू किए गए स्वदेशी आंदोलन की स्मृति में, वर्ष 2015 से, हर वर्ष सात अगस्त को हथकरघा दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने भारतीय कारीगरों और शिल्पकारों के खून-पसीने से निर्मित और उनके अतुलनीय कौशल से युक्त उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी की भावना को और मजबूत किया था।
भ्रष्टाचार को कतई सहन न करने की जरूरत पर बल देते हुए श्रीमती मुर्मु ने गांधीजी के इस कथन को याद किया कि “भ्रष्टाचार और दंभ, लोकतंत्र के अनिवार्य परिणाम नहीं होने चाहिए।” उन्होंने कहा, “हम सब यह संकल्प लें कि गांधीजी के इस आदर्श को कार्यरूप देंगे और भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करेंगे।”
उन्होंने कहा, “हमारे सुधारों और नीतियों से, विकास का एक प्रभावी मंच तैयार हुआ है। इस तैयारी के बल पर, मैं एक ऐसे उज्ज्वल भविष्य को देख पा रही हूं, जहां हम सब अपनी सामूहिक समृद्धि और खुशहाली में उत्साहपूर्वक योगदान दे रहे होंगे। उस भविष्य की ओर, हम भ्रष्टाचार के ‘प्रति तनिक भी सहनशीलता नहीं’ रखते हुए, अनवरत सुशासन के साथ आगे बढ़ रहे हैं।”
उन्होंने अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्र में तेजी से हो रही प्रगति का उल्लेख करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को रेखांकित किया । राष्ट्रपति ने कहा, “भारत ने आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने के मार्ग पर काफी दूरी तय कर ली है और प्रबल आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ता जा रहा है। आर्थिक क्षेत्र में, हमारी उपलब्धियां साफ-साफ देखी जा सकती हैं।” उन्होंने कहा कि पिछले वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर के साथ भारत, दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाला देश है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्याप्त समस्याओं के बावजूद, घरेलू मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बना हुआ है। निर्यात बढ़ रहा है। सभी प्रमुख संकेतक, अर्थव्यवस्था की मजबूत स्थिति को दर्शा रहे हैं। यह, हमारे श्रमिक और किसान भाई-बहनों की कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ- साथ, सुविचारित सुधारों और कुशल आर्थिक प्रबंधन का भी परिणाम है।
उन्होंने कहा कि सुशासन के साथ बड़ी संख्या में, लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है। सरकार, गरीबों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। जो लोग गरीबी-रेखा से ऊपर तो आ गए हैं लेकिन मजबूत स्थिति में नहीं हैं, उनको भी ऐसी योजनाओं की सुरक्षा उपलब्ध है ताकि वे फिर से गरीबी रेखा से नीचे न चले जाएं। उन्होंने कहा कि सरकार का कल्याणकारी प्रयास, सामाजिक सेवाओं पर बढ़ते खर्च में परिलक्षित होते हैं।
श्रीमती मुर्मु ने कहा कि आय की असमानता और क्षेत्रीय असमानताएं भी कम हो रही हैं। जो राज्य और क्षेत्र पहले कमजोर थे वे अब अपनी वास्तविक क्षमता प्रदर्शित कर रहे हैं और अग्रणी राज्यों के साथ बराबरी करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
ऑपरेशन सिन्दूर की चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि कश्मीर घूमने गए निर्दोष
नागरिकों की हत्या, “कायरतापूर्ण और नितांत अमानवीय थी। इसका जवाब भारत ने, फौलादी संकल्प के साथ निर्णायक तरीके से दिया।…… मेरा विश्वास है कि ऑपरेशन सिंदूर, आतंकवाद के विरुद्ध मानवता की लड़ाई में एक मिसाल के तौर पर इतिहास में दर्ज होगा।”
उन्होंने भारत के लोगों की एकता को आतंकवादियों के खलाफ जवाबी कार्रवाई की सबसे बड़ी विशेषता बताते हुए कहा कि “ यही एकता, उन सभी तत्वों के लिए सबसे करारा जवाब भी है जो हमें विभाजित देखना चाहते हैं।”
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने यह दिखा दिया कि जब राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न हो तो हमारे सशस्त्र बल किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह सक्षम सिद्ध होते हैं।
उन्होंने कहा, “विश्व-समुदाय ने, भारत की इस नीति का संज्ञान लिया है कि हम आक्रमणकारी तो नहीं बनेंगे, लेकिन अपने नागरिकों की रक्षा के लिए जवाबी कार्रवाई करने में तनिक भी संकोच नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, “ ऑपरेशन सिंदूर, प्रतिरक्षा के क्षेत्र में, ‘आत्मनिर्भर भारत मिशन’ की परीक्षा का भी अवसर था। अब यह सिद्ध हो गया है कि हम सही रास्ते पर हैं।” हमारा स्वदेशी विनिर्माण उस निर्णायक स्तर पर पहुंच गया है जहां हम अपनी बहुत सी सुरक्षा-आवश्यकताओं को पूरा करने में भी आत्मनिर्भर बन गए हैं। उन्होंने इन उपलब्धियों को स्वाधीन भारत के रक्षा इतिहास में एक नए अध्याय का सूत्रपात हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे स्वाधीनता संघर्ष में निराशा नहीं अपितु बलवती आशा का भाव था। आशा का वही भाव, स्वतंत्रता के बाद हमारी प्रगति को ऊर्जा देता रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए, हमारा संविधान और हमारा लोकतंत्र सर्वोपरि हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अतीत पर दृष्टिपात करते हुए, हमें देश के विभाजन से हुई पीड़ा को कदापि नहीं भूलना चाहिए।
राष्ट्रपति ने देशवासियों ने देश के विकास में यथाशक्ति अपना सर्वाधिक योगदान देने का आह्वान करते हुए कहा, “मेरा मानना है कि समाज के तीन ऐसे वर्ग हैं जो हमें प्रगति के इस मार्ग पर आगे बढ़ाएंगे। ये तीनों वर्ग हैं – हमारे युवा, महिलाएं और वे समुदाय, जो लंबे समय से हाशिये पर रहे हैं। अंततः, हमारे युवाओं को अपने सपनों को साकार करने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मिल गयी हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से दूरगामी बदलाव किए गए हैं। शिक्षा को जीवन-मूल्यों से, तथा कौशल को परंपरा के साथ जोड़ा गया है।
उन्होंने कहा कि युवा प्रतिभाओं की ऊर्जा से शक्ति प्राप्त करके, हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। मुझे विश्वास है कि शुभांशु शुक्ला की अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र की यात्रा ने एक पूरी पीढ़ी को ऊंचे सपने देखने की प्रेरणा दी है। यह अन्तरिक्ष-यात्रा भारत के आगामी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम ‘गगनयान’ के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध
होगी।
उन्होंने खेल के मैदान में देश की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि आत्मविश्वास से भरपूर हमारे युवा, खेल-जगत में अपनी पहचान बना रहे हैं। उदाहरण के लिए, शतरंज में अब भारत के युवाओं का जैसा वर्चस्व है वैसा पहले कभी नहीं था। राष्ट्रीय खेल नीति 2025 में निहित सपने के अनुरूप, हम ऐसे आमूल बदलावों की परिकल्पना कर रहे हैं जिनके बल पर, भारत एक वैश्विक खेल महाशक्ति के रूप में उभरेगा। बालिकायें हमारा गौरव हैं। वे प्रतिरक्षा और सुरक्षा सहित हर क्षेत्र में अवरोधों को पार करके आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने इसी संदर्भ में विश्व शतरंज चैंपियनशिप के लिए ‘फिडे महिला विश्व कप’ के फाइनल मैच का उल्लेख किया।
राष्ट्रपति ने पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दे पर कहा, “ हमें अपनी आदतें और अपनी विश्व-दृष्टि में बदलाव लाना होगा। हमें अपनी धरती, नदियों, पहाड़ों, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के साथ अपने संबंधों में भी परिवर्तन करना होगा।”
श्रीमती मुर्मु ने इस अवसर पर देश के सैनिकों, पुलिस तथा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों , न्यायपालिका और प्रशासनिक सेवाओं के सदस्यों को स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं दी। उन्होंने विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों में कार्यरत भारतीय अधिकारियों और प्रवासी भारतीयों को भी स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं दीं।